Tuesday, August 14, 2012

गीतिका का गुनाहगार कौन...?

पूर्व विमान पारिचारिका (एयर होस्टेस) गीतिका शर्मा की ख़ुदकुशी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. 23 साल की गीतिका की ख़ुदकुशी के पीछे हरियाणा के गृह राज्य मंत्री गोपाल गोयल कांडा द्वारा मानसिक प्रताड़ना की बात सामने आई है. सुसाइड नोट की बिना पर उक्त मंत्री के खिलाफ एफ. आई. आर. भी दायर किया गया. टीवी चैनलों को एक और मसाला मिल गया. हर चैनल इस आत्महत्या की मिस्ट्री को सबसे पहले सुलझाने में लगा है. खबर को सनसनीखेज बनाने की हर संभव कोशिश जारी है, लेकिन पूरे हंगामे में अहम बात ही गौण होती जा रही है. महज 23 वर्ष की आयु में गीतिका ने आखिर कितनी प्रताड़ना झेली होगी की उसे मौत को गले लगाना पड़ा? एक राज्य का गृह मंत्री जब ऐसी हरकत कर सकता है तो महिलाएँ खुद को कहाँ सुरक्षित महसूस करेंगी? जिस उम्र में लड़कियाँ अपने करियर और शादी के सपने देखती हैं उस उम्र में गीतिका ने दुनिया को अलविदा कह दिया. सच तो यह है कि ये किसी एक लड़की की कहानी नहीं, बल्कि अच्छे करियर का सपना देखने वाली ऐसी हजारों लड़कियों की कहानी है जो शारीरिक और मानसिक यातना की शिकार हैं. भले ही मीडिया में इक्का-दुक्का मामले सामने आते हैं, लेकिन यह हजारों कामकाजी महिलाओं और सुंदर भविष्य का सपना देखने वाली महिलाओं की कहानी है. बात भले ही आत्महत्या तक न पहुँचे लेकिन प्रताड़ना झेलने के लिए ये अभिशप्त हैं. इनमें से कई परिस्थितियों का डट कर सामना करती हैं तो कुछ अपने सपनों को समेट लेती हैं, जबकि कई इस क्रूर समाज की शिकार बन जाती हैं. इसके बावजूद आरोप इन्हीं महिलाओं पर लगाया जाता है, क्योंकि इन्होंने सपने देखने का जुर्म किया है. आम लोगों की धारणा यही होती है कि जो महिला ज्यादा महत्वाकांक्षी होती हैं उन्हीं के साथ ऐसा होता है. खुद को बचाने का इससे अच्छा बहाना और क्या हो सकता है इस समाज के पास. हमारे देश के सबसे बड़े वर्ग (मध्यवर्ग) की कुछ ऐसी ही धारणा है. यही वजह है आज भी लड़कियों की आजादी पर पाबंदियाँ लगाई जाती हैं. उन्हें हर कदम पर इस क्रूर समाज से बचाने के लिए उनके सपनों को रौंदा जाता है. जिस तरह बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों का शिकार करती हैं उसी तरह किसी भी संस्थान में ऊँचे पदों पर आसीन व्यक्ति खुद को शिकारी समझता है. ऐसा नहीं कि केवल महिलाओं को ही परेशान किया जाता है. पुरुषों के सामने भी समस्याएँ आती हैं, लेकिन इस पुरुषसत्तात्मक समाज में महिलाओं को प्रताड़ित करना आसान और आनंददायक समझा जाता है. उन्हें निचले स्तर का ही माना जाता है. महिलाओं को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने की कोशिशें चलती रहती हैं. हर कोई मौके की तलाश में तैयार रहता है. सामनेवाले को कमजोर पाते ही वह उसपर हावी होना चाहता है. ऐसा ही कुछ गीतिका और ऐसी हजारों लड़कियों के साथ हो रहा है. आश्चर्य की बात यह है कि जो अपराधी है उसे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन जिन महिलाओं को यह भुगतना पड़ता है वह बदनाम हो जाती हैं. महिलाओं के साथ छेड़छाड़ का मामला हो या बलात्कार का, समाज द्वारा महिलाएँ ही बहिष्कृत होती हैं, पुरूष अपराधी नहीं. ज्यादातर लोग मानते हैं कि ग्रामीण तथा अनपढ़ महिलाएँ हिंसा या अपराध की शिकार ज्यादा होती हैं, लेकिन सच तो यह है कि पढ़ी-लिखी, कामकाजी महिलाएँ हर दिन इस इस समस्या जूझ रही हैं. महानगरों में रहनेवाली ज्यादातर महिलाओं को हर दिन इस समस्या का सामना करना पड़ता है. पिछले दिनों जब महिला पत्रकारों की स्थिति पर एक शोध किया गया तो ज्यादातर महिलाओं ने यह स्वीकार किया कि महिलाओं को प्रताड़ित करने की कोशिशें चलती रहती हैं, लेकिन किसी ने भी खुद को इसका शिकार बताने परहेज किया. मतलब साफ़ है कि उन्हें अपनी छवि धूमिल होने का डर रहता है. यही वजह है कि उनकी समस्याएँ सबके सामने नहीं आ पातीं. समय के साथ लोगों के विचार बदले हैं और महिलाओं को कार्यक्षेत्र में महत्व भी मिल रहा है. लेकिन एक बड़ा वर्ग आज भी औरतों को अपने पावों की जूती समझता है. 10 सालों से समाचार चैनल में काम करने वाली "एक महिला पत्रकार का मानना है कि पुरुष अगर थोड़े कम योग्य हों तो चल जाता है, लेकिन महिलाओं को अगर काम करना है तो उसे बिलकुल परफेक्ट होना पड़ेगा." पुरुषवर्ग हर कदम पर अपनी महिला सहकर्मियों का लाभ उठाने की कोशिश करते हैं. कई बार वे सफल भी हो जाते हैं. अगर सफल न भी हुए तो भले ही उस महिला को नौकरी छोड़नी पड़े उनका कुछ नहीं बिगड़ता. गीतिका ने जाते-जाते इतनी हिम्मत तो दिखाई कि मंत्री का नाम सबके सामने आ पाया. ऐसी हिम्मत अगर वह जीते-जी दिखाती तो शायद उसे ही बेगैरत का खिताब दे दिया जाता. अपराध किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समाज का है जो ऐसे अपराधी को पनाह देता है. इस तरह के सभी अपराधियों को समाज से बहिष्कृत करने की जरूरत है. जो इंसान औरत को उपभोग या मनोरंजन की वस्तु समझता है उसे इंसान कहलाने का हक नहीं....