Thursday, November 8, 2012

शर्मिला तुझे सलाम

वर्धा में एक बार फिर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्द्यालय के छात्र-छात्राएँ मोमबत्ती की रौशनी में उम्मीद की किरण ढूँढते नजर आये. भले ही सरकार और मीडिया के लिए यह अनशन कोई मायने न रखे लेकिन यहाँ इरोम चानू शर्मिला के लिए सबके दिलों में दर्द था. विश्वविद्द्यालय के नौजवानों ने इरोम के संघर्ष को समझा ही नहीं बल्कि महसूसा भी. छात्रों द्वारा मणिपुर में 12 सालों से अनशन पर बैठी इरोम के समर्थन में एक कार्यक्रम ‘इरोम शर्मिला से एक संवाद’ आयोजित किया गया. इसका असर वहाँ मौजूद हर शख्श के चेहरे पर साफ़ दिख रहा था. पहले एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई. डॉक्यूमेंट्री यह बताने को काफी थी की किस तरह आफ्सपा क़ानून का सहारा लेकर सैनिकों द्वारा अत्याचार किया जाता है. पूरे आयोजन के दौरान मौजूद लोगों के चहरे पर क्षोभ और निराशा साफ देखी जा सकती थी. आयोजन के दौरान कुलपति विभूति नारायण ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और कहा की “अब और इंतजार नहीं किया जा सकता. इरोम की आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए राज्य को झकझोरने की आवश्यकता है.” कुलपति ने कार्यक्रम के संयोजक कमला थोकचोन, चित्रलेखा, प्रकाश और संजीव को बधाई देते हुए इरोम के संघर्ष को आगे बढ़ाने की अपील की. प्रसिद्ध कथाकार संजीव ने काफी भावुक होते हुआ यही सवाल किया कि “क्या हम सब इरोम के मरने की प्रतीक्षा कर रहे हैं?” वहीँ डिस्टेंस एजुकेशन के निदेशक धूमकेतू ने मीडिया की उदासीनता पर खिन्नता व्यक्त करते हुए पत्रकारों से आगे आने की अपील की. स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय के राकेश श्रीमाल ने मणिपुर और इरोम के संघर्ष की पूरी तस्वीर श्रोताओं के सामने रखी. इस अवसर पर छात्रों ने भी इस लड़ाई को समूचे देश में फैलाने की बात कही. कार्यक्रम के अंत में एक कैंडिल मार्च किया गया जो विश्विद्द्यालय के ही गांधी हिल में समाप्त हो गया. इरोम शर्मिला के दर्द को मणिपुर के लोगों से अधिक शायद कोई नहीं समझ सकता. यही वजह है कि मणिपुर की कमला थोकचोन ने वर्धा जैसे छोटे शहर में भी इरोम और मणिपुर की जनता के दर्द से सबको वाकिफ कराने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. अपनी कोशिशों और कुछ मित्रों के सहयोग से वह ऐसा करने में सफल भी हुई हैं. पिछले साल भी अनशन के 11 वर्ष बीतने पर विश्वविद्द्यालय के छात्र सड़कों पर उतरे थे और शहर में घूम-घूम कर लोगों को इस अनशन के बारे में बताया था. इरोम चानू शर्मिला के अनशन के 12 साल पूरे हो गए, लेकिन आज तक देश का आम आदमी इससे अनजान है. 12 साल के अहिंसात्मक अनशन के बावजूद न तो सरकार की नींद खुली और न ही मीडिया की. ऐसा लगता है मानो यह अनशन महज एक औपचारिकता बनकर रह गई है. हर साल कुछ लोग सामने आते हैं और सरकार को जगाने की असफल कोशिश करते है. इसे विडंबना कहें या हमारी बदनसीबी, एक क्रूर क़ानून पूरे पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर के लोगों को स्वछंद होकर जीने के हक़ से महरूम कर रहा है और हमारे देश लोगों को इसका अंदाजा भी नहीं है. 1958 से चले आ रहे सशस्त्र बल विशेष अधिकार क़ानून (आफ्स्फा) ने पूर्वोत्तर के लोगों का जीवन नरक बना दिया है. सेना के खौफ के साए में जी रही जनता को हर वक्त अपने सर पर खतरा मंडराता नजर आता है. 1956 में नागा विद्रोहियों से निबटने के लिए पहली बार मणिपुर में सेना भेजी गई. तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इसे अस्थाई बताते हुए 6 महीने में वापस बुलाने की बात कही थी, लेकिन 1958 में आफ्सपा लागू कर दिया गया और 1972 में पूरे पूर्वोत्तर में इसका विस्तार कर दिया गया. पाँच दशकों से अधिक वक्त बीत गया लेकिन आज भी पूर्वोत्तर से लोकतंत्र नहीं बल्कि सेना का राज है. इस दौरान सैकड़ों निर्दोष लोगों का खून बह चुका है. बलात्कार और हत्या की घटनाएँ आए दिन घटती रहती हैं. अन्ना हजारे को लिखे एक पत्र में इरोम ने कहा था कि, “अन्ना जी आप भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं और देश में सबसे अधिक भ्रष्टाचार तो मणिपुर में हो रहा है.” इसके बावजूद मणिपुर के लिए कोई आगे नहीं आया. 4 नवम्बर 2000 को इंफाल 10 किलोमीटर दूर मालोम गाँव असम राइफल्स के जवानों ने बस स्टैंड पर बैठे आम लोगों पर गोलियाँ चला दी जिसमें 10 लोग मारे गए. यह सबकुछ इरोम शर्मीला के सामने हुआ. इरोम से यह सब देखा न गया और उसने आफ्सपा क़ानून के खिलाफ अनशन शुरू कर दिया. इस आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार ने इरोम पर धरा 309 लगाकर आत्महत्या की कोशिश के आरोप में 21 नवंबर 2000 को गिरफ्तार कर जेल में दाल दिया. तब से शर्मीला लगातार हिरासत में ही है. उसे जबरन नाक से तरल पदार्थ दिया जा रहा है. जिस अस्पताल में उसे रखा गया है उसे जेल का रूप दे दिया गया है. एक साक्षात्कार में इरोम ने कहा था कि अनशन शुरू करने से पहले वह पूरी रात नहीं सो पाई थी, एक प्रश्न वह खुद से कर रही थी- “शांती की शुरुआत कहाँ और अंत कहाँ”. आज यही प्रश्न मणिपुर ही नहीं बल्कि पूरे देश के सामने मुँह बाये खड़ा है. क्या है आफ्स्फा क़ानून: 1. संदेह के आधार पर बिना वारंट कहीं भी घुसकर तलाशी ली जा सकती है. 2. किसी को भी गिरफ्तार किया जा सकता है. कहीं भी लोगों के समूह पर गोली चलाई जा सकती है. 3. जब तक केंद्र सरकार की मंजूरी न मिले सशस्त्र बलों पर किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती.

2 comments:

  1. Bilkul sahi kaha aapne. Pata nahi sarkar ki aankhe kab khulegi..........

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  2. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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