मेरा जन्म और पालन-पोषण बिहार में हुआ. घर का माहौल अच्छा रहा और लड़की होने के बावजूद काफ़ी स्वतन्त्रता मिली. बचपन में सोचने की शक्ती तो बहुत अधिक नहीं थी, लेकिन शुरू से चलन से हटकर काम करना अच्छा लगता था. शायद यही वजह थी कि आठ्वीं क्लास में स्कूल बदलते समय मैंने अपना नाम केवल ^सुनीता^ रखा. घरवालों को भी कोई आपत्ती नहीं थी. लेकिन जैसे-जैसे बडी हुई मुझे इस बात का एहसास हुआ कि नाम में सरनेम होना बहुत जरुरी है. फॉम भरने से लेकर कई इन्टरव्यू तक में मुझसे यही सवाल पूछा जाता रहा. बार-बार मुझे अपनी सफ़ाई में तर्क देना बड़ा अटपटा सा लगा. यह सिलसिला आज भी जारी है. मैं अकेली नहीं जिसे इस प्रश्न से जूझना पड रहा है. इस कतार में कई लोग हैं जिन्हें मैं जानती हूं. काफ़ी लोग तो सरनेम केवल इसलिये जानना चाहते हैं कि वो सामने वाले कि जाति के बारे में जान सकें. हम जैसे लोगों को ताने भी सुनने पडते हैं क्योंकि हम अपने धर्म और जाति का अपमान करते हैं.
बिहार में रहते हुए मुझे इतनी अधिक समस्या नहीं हुई कि मैं इस बारे में कुछ लिखने को मजबूर हो जाऊं. हां जब से महाराष्ट्र आई, तकरीबन हर दिन मुझे इस सवाल से जुझना पड रहा है. ट्रेन से लेकर विश्विद्दालय और होस्टल में नामांकन कराने तक हर जगह मुझे इसी सवाल का सामना करना पडा. बात केवल सवाल तक रहती तो शायद इतनी बुरी न लगती लेकिन मुझसे इसके लिये जिरह की जाती है. लोग यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि बिना सरनेम का भी किसी का नाम हो सकता है.
ट्रेन से वर्धा आने के क्रम में मेरी दोस्ती एक सभ्रांत परिवार से हुई. फ़ोन नम्बर का आदान-प्रदान भी हुआ. जब मैंने उनसे उनका नाम पुछा तो उन्होंने नाम बताने की जगह कहा कि हमलोग जायसवाल हैं, आप इसी नाम से नम्बर सेव कर लो और मैने कर भी लिया. अब सरनेम बताने की बारी मेरी थी, लेकिन मैंने उन्हें अपना नाम बताया. वो लोग मेरा सरनेम जानना चाह रहे थे. इस बात पे काफ़ी देर तक बहस भी हुई. धीरे-धीरे यह सवाल मेरे सामने रोज आने लगा. कभी-कभी तो यह महसूस होता है कि अपने नाम में सरनेम न लगाकर मैने बहुत बडी गलती कर दी.
चूंकि मैं पत्रकारिता से जुडी रही हूं, इंटरव्यू का दौर चलता रहता है. कई बार लोगों ने मुझे यह भी सुझाव दिया है कि आप साक्षात्कार के दौरान अपने किसी रिश्तेदार का नाम ले लेना जिससे आपकी जाति का पता उन्हें लग सके. इसकी वजह ये थी कि इस टीम मे जो लोग रहते थे वे मेरी जाति से ताल्लुक रखते थे.
एक और वाक्या बताना चाहूंगी. पिछ्ले दिनों दिल्ली में एक न्यूज चैनल में मेरा इंटरव्यू हुआ. जो टीम मेरा इंटरव्यू ले रही थी उसने भी मेरे नाम में सरनेम न होने की वजह पूछी. मेरे तर्क से वे प्रभावित तो हुए लेकिन तब तक उन्हें चैन न आया जब तक मेरी जाति के बारे में पता न चला.
एक सवाल दिमाग में कौंधने लगा कि क्या हमारी पह्चान केवल हमारी जाति या धर्म से है? क्या अपने परिवार, जाति, धर्म, कुल से अलग हमारी पहचान नहीं हो सकती?
मेरा मानना है कि व्यक्ति की खुद की पह्चान जरुरी है. हो सकता है कई लोग मेरी बातों से इत्तफ़ाक न रखते हों लेकिन इतना तो तय है कि किसी कि जाति का पता लगाए बगैर यदि उससे दोस्ती की जाये तो वो दोस्ती बहुत प्यारी होती है. अक्सर देखा गया है कि हर जाति के संबंध में लोग किसी न किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित रहते हैं. जाति के बारे में जानने के बाद सामने वाले के प्रति एक खास तरह की मनोवृत्ति बना ली जाती है जो उसके साथ सरासर नाइंसाफ़ी है.
मैं यह नहीं कहती कि जो लोग अपने नाम के आगे सरनेम लगाते हैं उनकी कोई अलग पहचान नहीं होती. लेकिन हर नाम का एक खास अर्थ होता है. यदि आप गौर करें तो पायेंगे किसी भी व्यक्ति के नाम का गुण उसके स्वभाव में जरुर आता है. एक जैसे नामों वाले भी कई लोग होते हैं, ऐसे में थोडी समस्या हो सकती है. ऐसे में सरनेम या नीकनेम का सहारा लिया जा सकता है. लेकिन अपने सरनेम को बचाने के लिये नाम का सहारा लेना मुझे उचित नहीं जान पडता. अपने पूर्वजों को अपनी कामयाबी का जरिया बनाना खुद को कमजोर समझना है.
सहमत हूँ और यह प्रयास मैं भी कर चुकी हैं अत: आपके अनुभवों को समझ पा रही हूँ...हँसी भी आती है, ख़ास तौर पर तब जब समानता की बात करने वाली हमारी शैक्षणिक या ऐसी ही कोई व्यवस्था के अंतर्गत हम एक साधारण फॉर्म तक बिना 'लास्ट नेम' या 'सर नेम' के नहीं भर पाते...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत विषय पर चर्चा और बहुत खूबसूरती से व्याख्या करने में सफल |
ReplyDeleteBahoot khoob, tmne fr se likhna suru kr diya, acha laga
ReplyDeletejahan tk sername wali baat hy, mai tmhari baton se puri tarah sahmat hu, hmare smaj ki mansikta me jatiwat itni gahrai tak pahuch gaya hy ki itne aadhunik hone k bawjood v hm ise chod nahi paa rahe hy, yahan mai jagjivan babu k kathan ka ullekh karna chahunga jahan unhone kaha hy ki "ek aadmi apna subkuch chod sakta hy prantu wah jati vywastha me apne vishwas ko tilanjali nahi de sakta".......
bahut hee sundar aalekh aur behtareen wyaakhya bhee. accha mudda aapne uthaya hai aaye din is tarah k sawalon se jujhna padta hai.
ReplyDelete.
ReplyDeleteपहली बार आपकी ब्लॉग पर आया, बहुत बढ़िया लिखती हैं.. कुछ अलग लिखती हैं...
ReplyDeleteदर-असल मेरे नाम में भी जातिसूचक शब्द नहीं है, फलस्वरूप ऐसी परेशानी मुझे भी होती है कभी-कभी..
बहुत सही आलेख.. बधाई.. लिखती रहिये...
Bahut achha subject tmne uthaya aur apne experience ko v share kiya bahut khub likha.
ReplyDeleteSansar parivartanshil hai, kal jo bandar the aaj wo sikandar hai, kal jo verma the aaj sharma ho gaye hai, meri samajh se surname me kuch nahi rakha hai, insan ki pehchan uske karmo se hoti hai, na ki surname se. jis tarah prakriti ka koi surname nahi hota, insan v prakriti ki hi den hai.jis tarah insan ki utpati ka koi alag-alag paimana nahi hota hai to phir ye sharma, verma. mandal, kamandal kya hai, ye sab insan ka apna banaya hua mapdand hai taki insan ka alag-alag ek samuh banaya jaye aur yahi karan hai aaj hamara samaj kai gharo me batan hai. Jatiwad k janjiro me jakara hua. isse samaj k kai tabko ko fayada v hota hai, to kaiyo ko kafi nuksan v uthana padta hai.
Abhi hal hi me, main ek news Chanel par AMITABH BACHCHAN ka interview dekh rhi thi. Jo unhone "aarakshan" film k promotion k dauran diya tha. Unhone khud k surname k bare me bataya ki jab school me admission k dauran unhe surnaname ki jarurat padi to unke pita ne apna surname "srivastav" dene bajaye apna pen-name "Bachchan" jisse wo likha krte the wo diya tha.agar wo aaj ek maha nayak nahi hote to unke surname se unki jati ka pata nahi chalta.
Hame is nafa-nuksan se upar uthkar sochna chahiye. Insan ko sabse pehle ek achha insan banana chahiye, achhe karm krne chahiye.
Main tumhe apni tarf se ek Pen-Name de rhi hun. Sunita "Priyadarshini"
Isi tarh khub likho,likhti raho.
Subhkamnao k sath....
Bahut khub is subject ko apne expeince k sath share krte hue tmne likha muhje bahut pasand aaya.
ReplyDeleteSansar parivartanshil hai, Meri samjh se surname me kuch nahi rakha hai. Insan ki pehchan uske karmo se hoti hai, na ki surname se, jis tarah prakriti ka koi surname nhi hota, insan v prakriti ki den hai. Jis tarah insan ki utpati ka koi alag-alag paimana nahi hota hai, to phir ye surname kya hai, ye sab insan ka banaya hua apna mapdand hai, taki insan ka alag -alag ek samuh bnaya jaye aur yahi karan hai aaj hamara samaj kai gharo me batan hai, jatiwad k janjiro me jakara hua.Isse samj k kai tabko fayada v hota hai, to kaiyo ko kafi nuksan v uthana padta hai, hame is nafa - nuksan se upar uthkar sochna chahiye.
Abhi haal me main TV k ek news Chanel par AMITABH BACHCHAN ka interview dekh rhi thi, jo unhone "AARAKSHAN" film k promotion k dauran diya tha, unhone apne surname k bare me bataya ki jb school me admission me unka surname pucha gaya to unke pita ne apna surname "SRIVASTAV" na dekar balki apna PEN-NAME "Bachchan" jisse wo likha krte the wo diya tha. Agar wo aaj ek maha nayak na hote to unke surname se unki jati ka pata nhai chalta.
Aur mera manana hai ki insan surname banate hai, surname insan ko nhi.
Main tumhe apni taraf se ek Pen Name de rhi hun."Priyadarshini"
Issi tarah khub likho, likhte raho
Subhkamnao k sath.....
Sunita,
ReplyDeletebahut sahi vishay par likhi ho. naam ke saath sername zaroori kyon ye aajtak samajh na aaya. mere naam se adhiktar log kai galatfehmiyaan paal lete hain, lekin aaj tak koi bahut badi mushkil nahin aai hai. sername se sidhaa taatpary hai ki apni jaati batao. kisi bhi jati ke hon kya karna kisi ko jaankar, fir bhi log puchhte hin rahte hain. main to mehsoos karti hun ki jaatiwaad aur bhi badhta ja raha hai.
achchha lekh, shubhkaamnaayen.
सुनीता जी, आपके पोस्ट पर पहली बार आया हूँ । पोस्ट अच्छा लगा ।
ReplyDeleteहम सब समाज में व्याप्त परिस्थितियों के साथ समझौता नही कर सकते । शहरों की बात ही अलग है किंतु गावों में आज भी सरनेम जीवित है । लोग इसे न जीने देते हैं न मरने देते हैं । मेर पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद ।
सुनीता जी मैं आपके कमेंट की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहा हूँ । एक अनजानी आत्मीयता से विवश होकर मैं पुन: आपको आमंत्रित कर रहा हूँ । आशा ही नही अपितु पूर्ण विश्वास है कि आप मेरे पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढाने की कोशिश कीजिएगा । धन्यवाद ।
ReplyDelete"... किसी कि जाति का पता लगाए बगैर यदि उससे दोस्ती की जाये तो वो दोस्ती बहुत प्यारी होती है... "
ReplyDeleteसहमत हूँ आपके विचारों से.
bahut sahaz aur sarthak abhivyakti hai aapki...main ye maanta hun ki kaanuni taur par apni zaati pradarshit karne par rok lagani chahiye..
ReplyDeleteअति सुंदर, समाज की वास्तविक छवि को दर्पण की तरह दिखाती, तथ्यों पर आधारित चंद लाइनें दिल को छू गईं। पोस्ट पर कमेंट और पसंद तो कोई भी पाठकगण कर सकता है लेकिन क्या हम अपने जीवन में इसे उतारेंगे ?... ये एक बड़ा सवाल है। हम उम्मीद करते हैं अपने ब्लागिंग मित्रों से कि धर्म और जाति की कोठरी में अपने दिमाग को बंद न करें। मानव जीवन तो समस्त जीवों में उत्तम हैं फिर हम मनुष्य होने के बाद भी दूसरों से जानवरों से भी बदतर व्यवहार क्यों करते हैं ?.... व्यथा मार्मिक है...
ReplyDeleteआप सभी लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteNice one.....I like it...how beautifully you wrote each and every minute points in this article with examples.....well done keep going..:)
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ReplyDeleteExcellent.....I like it.
ReplyDeleteWell done keep going..:)