Monday, August 22, 2011

आपका सरनेम क्या है...


मेरा जन्म और पालन-पोषण बिहार में हुआ. घर का माहौल अच्छा रहा और लडकी होने के बावजूद काफ़ी स्वतन्त्रता मिली. बचपन में सोचने की शक्ती तो बहुत अधिक नहीं थी, लेकिन शुरू से चलन से हटकर काम करना अच्छा लगता था. शायद यही वजह थी कि आठ्वीं क्लास में स्कूल बदलते समय मैंने अपना नाम केवल ^सुनीता^ रखा. घरवालों को भी कोई आपत्ती नहीं थी. जैसे-जैसे बडी हुई मुझे इस बात का एहसास हुआ कि नाम में सरनेम होना बहुत जरुरी है. फ़ोर्म भरने से लेकर कई इन्टरव्यू तक में मुझसे यही सवाल पूछा जाता रहा. बार-बार मुझे अपनी सफ़ाई में तर्क देना बडा अटपटा सा लगा. यह सिलसिला आज भी जारी है. मैं अकेली नहीं जिसे इस प्रश्न से जूझना पड रहा है. इस कतार में कई लोग हैं जिन्हें मैं जानती हूं. काफ़ी लोग तो सरनेम केवल इसलिये जानना चाहते हैं कि वो सामने वाले कि जाति के बारे में जान सकें. हम जैसे लोगों को ताने भी सुनने पडते हैं क्योंकि हम अपने धर्म और जाति का अपमान करते हैं.
बिहार में रहते हुए मुझे इतनी अधिक समस्या नहीं हुई कि मैं इस बारे में कुछ लिखने को मजबूर हो जाऊं. हां जब से महाराष्ट्र आई, तकरीबन हर दिन मुझे इस सवाल से जुझना पड रहा है. ट्रेन से लेकर विश्विद्दालय और होस्टल में नामांकन कराने तक हर जगह मुझे इसी सवाल का सामना करना पडा. बात केवल सवाल तक रहती तो शायद इतनी बुरी न लगती लेकिन मुझसे इसके लिये जिरह की जाती है. लोग यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि बिना सरनेम का भी किसी का नाम हो सकता है.
ट्रेन से वर्धा आने के क्रम में मेरी दोस्ती एक सभ्रांत परिवार से हुई. फ़ोन नम्बर का आदान-प्रदान भी हुआ. जब मैंने उनसे उनका नाम पुछा तो उन्होंने नाम बताने की जगह कहा कि हमलोग जायसवाल हैं, आप इसी नाम से नम्बर सेव कर लो और मैने कर भी लिया. अब सरनेम बताने की बारी मेरी थी, लेकिन मैंने उन्हें अपना नाम बताया. वो लोग मेरा सरनेम जानना चाह रहे थे. इस बात पे काफ़ी देर तक बहस भी हुई. धीरे-धीरे यह सवाल मेरे सामने रोज आने लगा. कभी-कभी तो यह मह्सूस होता है कि अपने नाम में सरनेम न लगाकर मैने बहुत बडी गलती कर दी.
चूंकि मैं पत्रकारिता से जुडी रही हूं, इंटरव्यू का दौर चलता रहता है. कई बार लोगों ने मुझे यह भी सुझाव दिया है कि आप साक्षात्कार के दौरान अपने किसी रिश्तेदार का नाम ले लेना जिससे आपकी जाति का पता उन्हें लग सके. इसकी वजह ये थी कि इस टीम मे जो लोग रह्ते थे वे मेरी जाति से ताल्लुक रखते थे.
एक और वाक्या बताना चाहूंगी. पिछ्ले दिनों दिल्ली में एक न्यूज चैनल में मेरा इंटरव्यू हुआ. जो टीम मेरा इंटरव्यू ले रही थी उसने भी मेरे नाम में सरनेम न होने की वजह पूछी. मेरे तर्क से वे प्रभावित तो हुए लेकिन तब तक उन्हें चैन न आया जब तक मेरी जाति के बारे में पता न चला.
एक सवाल दिमाग में कौंधने लगा कि क्या हमारी पह्चान केवल हमारी जाति या धर्म से है? क्या अपने परिवार, जाति, धर्म, कुल से अलग हमारी पहचान नहीं हो सकती?
मेरा मानना है कि व्यक्ति की खुद की पह्चान जरुरी है. हो सकता है कई लोग मेरी बातों से इत्तफ़ाक न रखते हों लेकिन इतना तो तय है कि किसी कि जाति का पता लगाए बगैर यदि उससे दोस्ती की जाये तो वो दोस्ती बहुत प्यारी होती है. अक्सर देखा गया है कि हर जाति के संबंध में लोग किसी न किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित रहते हैं. जाति के बारे में जानने के बाद सामने वाले के प्रति एक खास तरह की मनोवृत्ति बना ली जाती है जो उसके साथ सरासर नाइंसाफ़ी करना है.
मैं यह नहीं कह्ती कि जो लोग अपने नाम के आगे सरनेम लगाते हैं उनकी कोई अलग पह्चान नहीं होती. लेकिन हर नाम का एक खास अर्थ होता है. यदि आप गौर करें तो पायेंगे किसी भी व्यक्ति के नाम का गुण उसके स्वभाव में जरुर आता है. एक जैसे नामों वाले भी कई लोग होते हैं, ऐसे में थोडी समस्या हो सकती है. ऐसे में सरनेम या नीकनेम का सहारा लिया जा सकता है. लेकिन अपने सरनेम को बचाने के लिये नाम का सहारा लेना मुझे उचित नहीं जान पडता. अपने पूर्वजों को अपनी कामयाबी का जरिया बनाना खुद को कमजोर समझना है.

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