Friday, May 17, 2013

सुशासनी माहौल में भी सुरक्षित नहीं महिलाएं



बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर यह कहते हुए पाए जाते हैं कि आकर देखिये हमारे पटना में रात के दस बजे भी डाक बंगला चौराहे पर लड़कियां आइस्क्रीम खाते हुए मिल जायेंगी. बिहार में बेहतर लॉ एंड ऑर्डर है. इसका जमकर प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है. इसके चलते धीरे-धीरे बिहार सुशासन का पर्याय बनता गया. देश-दुनिया में उनकी चर्चा हुई. उन्हें कई सम्मान मिले. मसलन, त्रिस्तरीय पंचायत में महिलाओं के आरक्षण को 33 प्रतिशत से बढाकर 50 प्रतिशत करना. पार्टी से अलग लाईन लेते हुए संसद में महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करना. महिला थाने की स्थापना करना. और तो और स्कूली छात्राओं को साईकिल बांटकर तो इन्होंने खूब लोकप्रियता हासिल की.

अव्वल तो ये कि इन फैसलों को जमकर प्रचारित-प्रसारित भी किया गया, और इसका फायदा भी खूब बटोरा गया. लेकिन सुशासन के पर्याय के रूप में बिहार को स्थापित करने की कोशिश में लगे नीतीश के सुशासन का आवरण अब उतरने लगा. खुद बिहार पुलिस की वेबसाईट यह बताती है कि जुलाई 2012 तक कॉगनिजेबल (संज्ञेय) अपराधों की संख्या 94 हज़ार 188 है. महिलाओं की बेहतरी को तत्पर नीतीश के सुशासनी माहौल में जुलाई 2012 तक कुल 562 रेप की घटनायें हो चुकी हैं. ये आंकड़े बिहार पुलिस की वेबसाईट बताती है, जबकि वास्तविक आंकड़े भयावह स्थिति दर्शाने लगी है. वेबसाईट की बात छोड़ भी दें तो गत मार्च को विधानसभा में प्रभारी गृह मंत्री विजय कुमार चौधरी ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि अक्टूबर 2012 तक बलात्कार के 823 मामले दर्ज किये गये हैं. नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े को अगर देखें तो 2008 में महिलाओं के खिलाफ 6186 घटनायें दर्ज की गयी, 2011 में यह घटना बढ कर 10 हज़ार 231 हो गयी. मतलब यह कि मात्र तीन वर्षों में महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा में 65 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है. वहीं बिहार में 14 से 49 वर्ष की 56 प्रतिशत महिलायें शारीरिक एवं सेक्सुअल हिंसा की शिकार हैं. महिलाओं के लिये खासी चिंतित रहने वाली इस सरकार में हाल के दिनों में लगातार हिंसा बढ़ी हैं. औसतन बिहार के किसी भी जिले से बलात्कार या महिला उत्पीड़न की घटना रोज आती है. सरकार सा अधिकारी महिलाओं की सुरक्षा या स्वाभिमान को लेकर बिल्कुल लापरवाह हैं. इसके कई उदाहरण हैं.

बीते सितंबर को ही राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बिहार की सीवान जिले में तेजाब हमले में बुरी तरह जख्मी हुई एक किशोरी के मामले को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार से इस पीडिता के उपचार के लिए तत्काल वित्तीय मदद मुहैया कराने का आग्रह किया था. आयोग के मुताबिक, तेजाब हमले की पीडितों की मदद के लिए कई राज्यों ने वित्तीय मदद के प्रावधान किए हैं, लेकिन बिहार में इससे जुडा कोई कानून नहीं है. आयोग को आदेश दिये हुए सात महीने गुजर गये हैं लेकिन वित्तीय मदद की बात तो दूर राज्य सरकार का कोई अधिकारी ने पीड़िता के परिवार से संपर्क करने की कोशिश भी नहीं की. सीवान के हरिहंस गांव में बीते 26 सितंबर को कुछ युवकों ने 14 साल की इस लडकी पर तेजाब फेंक दिया था. इस हमले में यह लडकी बुरी तरह से झुलस गई है. लड़की के पिता आरिफ फिलहाल सफदरजंग में अपनी बेटी का इलाज करा रहे हैं. आरिफ कहते हैं कि साहब क्या-क्या करें, सरकार से मदद मांगने जायें, कोर्ट का चक्कर लगायें या बेटी का इलाज करायें. आरिफ ने कई दफे स्वास्थ्य विभाग से बात भी की, लेकिन अबतक आरिफ को आश्वासन ही दिया जा रहा है. यह अकेला मामला नहीं है. अभी हफ्ते भर पहले पूर्वी चंपारण के कल्याणपुर थाना क्षेत्र में 10वीं की छात्रा के साथ चार लोगों ने गैंगरेप करने के बाद उसके शरीर पर तेजाब डाल दिया और गला दबाकर उसकी हत्या करने की कोशिश की.

राजधानी से महज बीस किलोमीटर दूर मसौढ़ी थाना के क्षेत्र की दो बहनों पर भी बीते अक्टूबर में ही एसिड से हमला किया गया था. फिलहाल इसकी मदद को पूर्व सांसद व रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा सामने आये हैं. यही वजह है कि यह मामला उभर कर सामने आया है नहीं तो अन्य घटनाओं की तरह ही दफन हो जाता. ठीक इसी नवरात्रा में सप्तमी के दिन 19 वर्षीय चंचल को एसिड से जला दिया जाता है. काल की तरह आयी उस रात को चंचल याद करते हुए सहम जाती है. उस रात उसे ऐसा लगा था मानो किसी ने आग की भट्ठी में झोंक दिया हो. चंचल कहती है आप मेरी तस्वीर पूरी दुनिया को दिखाइये ताकि लोग देख सकें कि इस सुशासन में मेरा क्या हाल है. लोग सच्चाई को जान सकें. 21 अक्टूबर की रात, मां-पिता और दोनों बहनें छत पर होती हैं. कल कन्या पूजन है, इस विजयादशमी को कैसे मनायेंगे यही सब बतियाते हुए सारे लोग छत पर ही सो जाते हैं. रात के लगभग बारह बजे चंचल अपनी 16 साल की बहन सोनम के साथ छत पर सो रही होती है तभी उसी के मुहल्ले के चार लड़के आते हैं और सो रही चंचल व सोनम के शरीर से रजाई हटा कर उसपर एसिड डाल देते हैं. सुंदर, चुलबुली व मां-पापा की लाडली चंचल बुरी तरह झुलस जाती है. पहले तो उसे और उसके घरवाले को लगता है कि लड़कों ने गरम तेल डाला है. लेकिन माजरा समझते देर नहीं लगती है. चंचल को ही बचाने के क्रम में उसकी बहन सोनम का दायां हाथ भी बुरी तरह झुलस जाता है. पिता शैलश पासवान व माता सुनैना देवी को कुछ समझ में नहीं आता है कि क्या किया जाय. वे आस-पड़ोस, गली-मुहल्ले सभी से जाकर मदद की गुहार लगा रहे होते हैं लेकिन कोई भी मदद के लिये आगे नहीं आता है. लेकिन किसी तरह मां-पिता चंचल व सोनम दोनों केा लेकर पीएमसीएच पहुंचते हैं जहां उसका इलाज शुरू होता है. सूबे की व्यवस्था की विडंबना देखिये कि घटना के छह महीने बीत जाने के बाद भी अबतक राज्य सरकार को कोई सक्षम पदाधिकारी पीड़ित परिवार से मिलने नहीं पहुंचा है.

घटना के पांच महीने बीत जाने के बाद महिला आयोग को ध्यान आता है और वह खानापूर्ति के लिये 10 अप्रैल को चंचल और उसके परिवार वाले से मिल आती है. इसके बाद से अबतक आयोग की तरफ से कोई भी ठोस पहल नहीं की गई इस दिशा में कि कैसे चंचल को न्याय मिल सके, उसके इलाज की उचित व्यवस्था की जा सके. शैलेश पासवान आज भी डर-डर कर ही जी रहे हैं वे साफ कहते हैं कि घटना को अंजाम देने वाले दबंग परिवार से आते हैं और आज भी मुकदमा उठा लेने को लेकर धमकी दिया जाता है. क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड की कल्पना तक नहीं कर सकने वाले शैलेश पासवान बीपीएल के लाल कार्ड वाले हैं. दैनिक मजदूर हैं. बेटी को न्याय और उचित इलाज मिल सके इस फिराक में वे सभी दरवाजे को खटखटा कर निराश हो चुके होते हैं. इसी बीच स्थानीय पत्रकार व समाजसेवी निखिल आनंद उनके लिए उम्मीद की किरण बन कर आते हैं.

निखिल फेसबुक पर एक पेज हेल्प ऐसिड अटैक विक्टिम के नाम से बनाते हैं. इसी पेज के माध्यम से राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा को इस घटना के बारे में जानकारी मिलती है. इसके बाद कुशवाहा कई दफे पीड़ित परिवार से जाकर मुलाकात करते हैं. फिलहाल कई दिनों से कुशवाहा चंचल, सोनम, उसके मां-पिता व पत्रकार निखिल के साथ रांची रहकर आये हैं. रांची के देवकमल अस्पताल के डायरेक्टर व जानेमाने पलास्टिक सर्जन डॉ. अनंत सिन्हा ने कहा है कि जून से चंचल का इलाज शुरू होगा. डॉ. के अनुसार चंचल को लगभग 11-12 सर्जरी से गुजरना पड़ेगा. अनंत सिन्हा अस्पताल के चार्ज व अपनी फीस नहीं लेंगे. बावजूद इसके सर्जरी में लगभग 15 लाख रूपए खर्च होने की संभावना है. फेसबुक के जरिये मदद की भी अपील की जा रही है. हालांकि इस बीच खुद डॉक्टर अनंत सिन्हा व उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि पैसे की कमी की वजह से इलाज नहीं रोका जायेगा. घटना को जानते समझते हुए चंचल और सोनम से मिलने का मौका मिलता है. चंचल की जीवटता और हौसला देखकर हर कोई आश्चर्य से भर उठता है. चंचल बहुत आराम से नहीं बोल पाती है. लेकिन फिर भी वह कोशिश करती है कि अपनी पीड़ा, अपना दर्द वो खुद बताये. साथ ही यह भी कहना नहीं भूलती है कि वह कम्पयूटर इंजीनियर बनना चाहती थी.

थोड़ी ठहर कर वह कहती है पहले इलाज करा लूं, अपना मुकाम तो मुझे पाना ही है. अपने चेहरे को दुपट्टे से ढ़की चंचल हमसे बात कर रही होती है. उसे बोलने में भी तकलीफ हो रही है. रह-रह कर वह जलन से कराह उठती है. अपने हाथ में उसकी पुरानी तस्वीर को देख पूरा मस्तिस्क सन्न से रह जाता है, एकदम शून्य. वाकई देख नहीं सकने वाला चेहरा दरिंदों ने बना दिया है. आंखें गल चुकी हैं. होंठ का पता ही नहीं चलता है. चंचल का खूबसूरत और प्यारा सा चेहरा पहले जिसने भी देखा होगा वह अब उसे पहचान नहीं पायेगा. चंचल के इस चेहरे को देख एकबारगी तो यह जरूर ख्याल आता है कि तालिबान और अफगानिस्तान में रेपिस्टों को दी जाने वाली सजा ही सही है. चंचल ढ़ंग से बोल नहीं पाती है. वह भर पेट भोजन भी नहीं कर पाती है. नींद भी उसे कम ही आती है. जलन से वह हमेशा परेशान रहती है. इसके बाद भी चंचल की जीवटता इस सभ्य समाज को रोज तमाचा जड़ता है. चंचल के पिता शैलेश पासवान कहते हैं कि अबतक प्रशासन की ओर से कोई मदद नही की गई है. बड़े अधिकारियों की तो छोड़िये मुखिया-सरपंच को फुरसत नही हुई हमसे सहानुभूति के दो शब्द कहने की. मां सुनैना देवी को अब समाज से ही उम्मीद है. वे कहती हैं कि अगर समाज चाहे तो हमारी दुनिया फिर से बस सकती है. निखिल कहते हैं कि घटना के सात महीने हो चुके हैं लेकिन अबतक 164 का बयान तक नहीं लिया गया है, जबकि पीड़िता डीएम से गुहार लगा चुकी है.

बताते चलें कि इस मामले में आरोपी अनिल, राज, घनश्याम और बादल जेल में हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि इन लड़कों का चरित्र कभी ठीक नहीं रहा है. वहीं जानकारी मिलती है कि इससे पहले भी यह शेरपुर में छेड़खानी की घटना कर चुका है. शैलेश पासवान कहते हैं कि इन चारों के खिलाफ दो साल पहले भी स्थानीय थाने में शिकायत की थी, लेकिन प्रशासन ने कभी गंभीरता से नहीं लिया. उपेंद्र कुशवाहा इस मुददे पर राजनीति से उपर उठकर कहते हैं कि राज्य सरकार को चंचल की मदद के लिये आगे आना चाहिये, और वह ऐसा कानून बनाये कि आगे ऐसी घटना न हो.

(14 मई 2013 को palpalindia.com में प्रकाशित)

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